झारखंडः क़र्ज़ लेकर स्कूलों में आ रहा खाना; जानिए पूरा मामला

झारखंड में मिड डे मील योजना की स्थिति बदहाल है. आलम ये है कि सरकार की महत्वकांक्षी योजना मध्यान भोजन इन दिनों कोमा में चली गयी है. विद्यालयों में मध्यान्ह भोजन का संचालन सरस्वती वाहिनी माता समिति करती है. माता समिति का खाता पिछले साथ 8 महीने से जीरो बैलेंस है. ऐसे में स्कूल के प्राचार्य एवं संयोजिका जिसे खाना बनाने की जिम्मेदारी मिली है वह उधार में सामान लाकर बच्चों को खाना खिला रही हैं.
चावल तो एफसीआई द्वारा मिल जाता है, लेकिन मसाला, तेल, सब्जी और अंडा उधार में लाकर बच्चों को खिलाना पड़ रहा है। राजधानी के एक स्कूल के प्राचार्य ने बताया कि प्रतिदिन 600 से 700 रुपये का सामान उधार में ला रहे हैं। एक सप्ताह से अधिक होने पर दुकानदार भी सामान नहीं देना चाहता है। कुछ स्कूलों का कहना है कि उन्हें मार्च महीने में अंडे और फल की राशि उपलब्ध कराई गई , जिससे मिड डे मील संचालित करने का निर्देश दिया गया है। कुछ स्कूलों में राशि के अभाव में शिक्षक मिलकर मसाला, तेल, सब्जी, अंडा आदि की व्यवस्था कर रहे हैं। गैस सिलेंडर का खर्च अलग है।
डोरंडा कन्या पाठशाला की प्राचार्या पारोमिता सामल कहती हैं कि स्कूल में अंडे के लिए राशि आई है, फिलहाल इसी से कुकिंग कॉस्ट का खर्च निकाला जा रहा है। गैस सिलेंडर पर अतिरिक्त खर्च हो रहा है। हीनू यूनाईटेड मध्य विद्यालय के प्राचार्य विमलेश कुमार मिश्र कहते हैं कि कुकिंग कॉस्ट नहीं मिला है, इसलिए दुकान से सामान उधार पर ला रहे हैं। अंडा और फल के लिए राशि मार्च तक की आई थी, जो खर्च हो गई। राजकीयकृत मध्य विद्यालय जरिया बेड़ो दो के प्रभारी प्राचार्य सुखनाथ कुम्हार ने बताया कि उन्हें मार्च महीने की कुकिंग कॉस्ट की राशि मिली थी, लेकिन वह पर्याप्त नहीं थी। बच्चों को खाना तो खिलाना है, इसलिए दुकानदार से उधार में अनाज मंगा कर खाना बनवाया जा रहा है।
रांची जिले के 2156 स्कूलों में चलता है मिड डे मील
जब मिड डे मील स्कूलों में बनना है और विद्यार्थियों को भोजन कराना है तो स्कूलों में पूर्व की तरह एडवांस में कुकिंग कॉस्ट की राशि उपलब्ध होनी चाहिए। वेंडर वाली प्रक्रिया में स्कूलों की परेशानी बढ़ गई है। – नसीम अहमद, शिक्षक संघ